...

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मन की आवाज़
चलो आज हम कुछ लिखते हैं
अपने मन की आवाज़ सुनते हैं
जिम्मेदारियों तले जो पल बीते हैं
आज उनसे निकल मुस्कुरा लेते हैं
याद है ना, वो पहली सुबह ही थी
जब बचपन में हम स्कूल गये थे
छोड़ माँ की ऊँगली कलम पकड़े थे
आओ आज उसी की बातें कर लेते हैं
जब कच्ची पगडंडी से गुज़रा करते थे
उड़ता जहाज देख ख़्वाब सजाते थे
पायलट, टीचर, डॉक्टर, इंजिनियर,
आई.ए.एस, सिपाही कौन बड़ा होता है
चोर-पुलिस, गिल्ली-डंडा, आती-पाती
और मास्टर जी की छड़ी संग याद है ना,
कैसे हम आँख मिचौली किया करते थे
क्यों हो उदास, चलो बचपन में जीते हैं
धन की तो जरूरत लगी रहेगी पर क्या
माना कि तू डॉक्टर,वो इंजीनियर, व्यापारी,
आईएएस,सिपाही और मैं बेरोजगार ठहरा
पर जीवन के हर मोड़ पर एक दूजे के होते हैं
फिर क्यों आज हृदय से उदास रहते हैं
चलो करम् को गति, प्रित की देते है
बेरोजगारी तले भी थोड़ा सा मुस्कुरा लेते हैं
वो पहली सुबह याद कर आज कुछ लिखते हैं

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