...

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मेरी नज़र से देखो न
क्यूंँ डरती हो तुम यूंँ,
प्रीत की रीत निभाने से।
क्यूंँ डगमगाते है पग यूंँ,
प्रेम की डगर चलने से।1

दिल से दिल निश्छल मिले,
मधुर प्रेम कोई दिखावा नहीं।
देखो तुमसे मेरा यह लगाव ,
सुनो डरो मत ये छलावा नहीं।2

तोड़े और जोड़े जाते नहीं,
कहीं दिलों के बंधन जबरन।
खुद को खुद से हार कर ही,
जुड़ जाते है प्रेम के बंधन ।3

नफरतों को दिलों में पाल कर,
कहाँ ये रीत निभाई जाती हैं।
..."मेरी नज़र से देखो न..."
प्रेम से ही दुनियां जीती जाती है।4
लेखक_#ShobhaVyas
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