...

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खुद पर भरोसा रखो
।।खुद पर भरोसा रखो ।।

मानव तू क्यों घबराता है स्याह लघू जंजालों से,
तमस निशा के अंधकार से और भयावह व्यालों से।
क्यों घबराता कर्तव्यों के सुगम शांत रण दंगल से ,
ये दुनिया है कर्म भूमि तू सिंह सा आया जंगल से।
रखो भरोसा निज बल मन पर कार्य करो नूतन नूतन ,
मानव मनु संतान है तू तो नव प्रभात तो जीवन से।।....


सभी अनोखे हुए हैं अब तक चमत्कार के थे स्वामी ,
तू भी न कुछ साधरण है तन मन से अंतर्यामी।
सांझ समय का सूर्य नहीं तू नवप्रभात नभ कुंडल है,
दुख चिंता का अंधकार न हसमुख तेज का मडल है ।
तू छायेगा दिग्दिगंत में दिनमान बनेगा तेरा तन,

रखो भरोसा निज बल मन पर.........


देखो ग्रीष्म काल बेला में तरुवर कितने जलते हैं ,
फिर भी ओ उठते वर्षा में पड़े हाथ न मलते हैं ।
कर्म करो करते जाओ मन धीरज का निधिधाम रखो,
तन को चूर करो कर्मों से मन को पर आराम रखो ।
अटल लक्ष्य रख चलते जाओ और न कोई धेय रहे ,
मंजिल ही मुक्तक दोहा हो मंजिल ही बस गेय रहे।
ऐसे करो करम तुम बस अब जीवन को सौपो तन मन,
रखो भरोसा निज बल मन पर कार्य करो नूतन नूतन।।।


लेखक अरुण कुमार शुक्ल
© अरुण कुमार शुक्ल