...

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जले पे नमक...
हँसतीं हूँ मैं तुम्हारे के साथ,
हर रोज़ हम करतें हैं बात।
जलतीं हूँ मैं तुम्हारी बातें सुनकर,
अब उसके बारे में मुझे और मत सुनया कर।

कुछ खाली सा लगता है मुझे,
क्यों समझ नहीं आता है तुझे?
रोज़ सोचते रहती हूं मैं,
क्या होता अगर मिले थे ,उन जैसे हमे?

जलन होती है अंदर से,
कहती हूँ, ‘बस एक बार और, संबल जाओ’ अपने दिल से।
तुम हो मरी दोस्त अच्छी,
बस उन्हें बीच में लाकर मत बनाओ हमारी दोस्ती को कच्ची।

नहीं है मेरे पास,
कोई उनके प्यार जैसे देने वाला अहसास।
जल उठती हूँ मैं,
जब बताती हो तुम उनके बारे में मुझे।

अभी मिलना भी छोड़ दिया है मैंने,
तेरे कमरे की तरफ आना भी बंध कर दिया है हमने।
मुझे भी चाहिए की हो कोई कभी,
और मुझ से भी उनकी तरह प्यार करे कोई।







© Pam-1710