...

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तक़दीर ए प्यार
थे हम सफ़र में उस वक्त मंज़िल के
तब पहली दफा किया हमने दीदार था
इक मुलाक़ात में सारा ऐतमाद लुटा दिया
इतना ख़ुद पर भी ना किया ऐतबार था

था वो वक्त जीवन के शबाब का
मेरे दिल के टूटें हुएं ख़्वाब का
पर जब इज़हार ही रह गया अधूरा
तो फ़िर कैसे हों इंतजार उनके जवाब का

गुज़र गया वो ना जाने कहीं
बस ख्यालों में धुंधली तस्वीर हैं
संग जिसका मांगा हमने दुआओं में
बस उसकी दूरियों की मेरी तक़दीर हैं

दिल इक दफा जो निसार हों गया
उसकी जुस्तजू में वो बेकरार हो गया
दुनिया कहती लाखों हैं मिलेंगे भूल जा
पर क्या करें रूहानी उनसे प्यार हो गया

सिर्फ़ ज़ेहन में होता अक्स उसका
तो भूल जाना भी मुमकिन होता
पर दिल में जो बस जाएं जज़्बात बनकर
तो उसको भूल जाना मुश्किल होता

तमन्नाओं को सजाएं
हम आज भी मुंतजिर बैठे
तलबगार हैं हम उनकी मुलाक़ात के
पर साथ में हारीं तक़दीर बैठें

मुंतशिर अब हर आलम हैं
यादों को सिर्फ़ उसका मालूम हैं
इक दीद हों जाएं तो सुकून हैं
बाकी तो ज़िंदगी को बेकरारी मालूम हैं

रहमत नजरों में उसकी हमनें देखा हैं
अदा में सादगी का नज़ारा हैं
वो हैं लबों पे सजाएं प्यारे अल्फ़ाज़
कुछ पल में मान बैठें वो हमारा हैं

वो सादगी में बड़ी दिलकश लगे
बातों में ख़ूबसूरती का अंदाज़
जो कह दें वो दिल की बात
हम बन जाएं उनके हमराज़

उम्मीदें सारी ख़त्म हैं,ये तो ख्यालों की बात हैं
ख्वाबों में साथ वो हैं, हकीकत तन्हां रात हैं

-उत्सव कुलदीप





© utsav kuldeep