...

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सच्चा प्यार और झूठी मोहब्बत
पहले जैसा सच्चा और पवित्र प्रेम गर,
सच मानो तो इस दौर में अब रहा नहीं।
झूठी मोहब्बत करते हैं अब सब ,दिल
निभाता है अब कोई यहां रिश्ता नहीं।

आज कल के दौर में ऑंखों से शुरू हुई,
मोहब्बत का अब कोई ऐतबार नहीं।
दो दिलों का एकदम से मिल जाना,
भी अब रही कोई इतनी बड़ी बात नहीं।

प्रेम तो खेल हो गया युवाओं में किसी,
के प्रति आकर्षण को कहते प्यार नहीं।
सच्ची मोहब्बत क्या होती है इसकी ,
तो उन्हें कोई तनिक भी पहचान नहीं।

दिल से निभाने पड़ते हैं रिश्ते क्योंकि,
बातों बातों से यहां निभता प्यार नहीं।
प्रेम की कश्ती में सवार हर कोई होता है ,
पर दिल से निभाता हर कोई प्यार नहीं।