गुमनाम पीड़ा......
कुछ पीड़ाओं की किस्मत भी न
इतनी अधिक ख़राब होती है
उनको नहीं मिलते संगी कभी
अपने दर्द से स्वतंत्र होने को....
उन पीड़ाओं से दूर रहते हैं हर्फ़
वो नहीं उतारी जातीं पृष्ठों पर
क़लम से भी नाता नहीं होता
स्वर नहीं मिलते सुनाने को....
वो छिपी रहती हैं हृदय में...
इतनी अधिक ख़राब होती है
उनको नहीं मिलते संगी कभी
अपने दर्द से स्वतंत्र होने को....
उन पीड़ाओं से दूर रहते हैं हर्फ़
वो नहीं उतारी जातीं पृष्ठों पर
क़लम से भी नाता नहीं होता
स्वर नहीं मिलते सुनाने को....
वो छिपी रहती हैं हृदय में...