...

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आत्मसम्मान
देख मनु, आज फिर इंसानियत हार गया
बीच सड़क पर हुआ पुनः शर्मसार रहा,
अपनी काया की आड़ में बैठ कर
बर्बरता का अपना उसने फिर प्रचार किया,
पी कर कड़वा घुट आत्मसम्मान का
बेबस वो लाचार खड़ा रहा,
है धिक्कार तुझ पर इंसां
मूक बन कर भीड़ तू भी तमाशा था देख रहा,
किसी ने शस्त्र को भी शास्त्र बनाया
तो तूने भी शास्त्र को ही शस्त्र बना डाला,
अपने अश्कों को भी दबा कर वो खड़ा था
देख तेरी काया वो बांध अपने कर था रहा,
बेबसी का था उसको अपने ज्ञान
मूर्खों की भीड़ में वो मदारी का बना बन्दर था,
निर्बुद्धि वो मनु की काया जिसको ख़ुद का अभिमान था
तू क्यों दर्शक बन मूक वहाँ खड़ा था,
क्या धिक्कारा नहीं तेरे ज़मीर ने तुझको
बेबस की आत्मसम्मान का ख्याल क्या रहा नहीं तुझको ?
© LivingSpirit