हमदर्द करीब अपने बिठाया करो 'बैरागी
सबको न गले ऐसे लगाया करो 'बैरागी '
हमदर्द करीब अपने बिठाया करो 'बैरागी
बैठो कभी जब अक्स तुम्हारा हो मुकाबिल
आँखें न कभी खुद से चुराया करो 'बैरागी '
जाओ किसी मेले में, कभी बाग़ में टहलो
हंस-हंस के भरम ग़म का...
हमदर्द करीब अपने बिठाया करो 'बैरागी
बैठो कभी जब अक्स तुम्हारा हो मुकाबिल
आँखें न कभी खुद से चुराया करो 'बैरागी '
जाओ किसी मेले में, कभी बाग़ में टहलो
हंस-हंस के भरम ग़म का...