...

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बहू और बेटी
देखा है मैंने लोगों को,बहू और बेटी में फ़र्क करते हुए,
क्यूँ करते हैं लोग फ़र्क, बहू और बेटी में, ये सोचते हुए।

अपनी बेटी को पराया धन समझते हैं,
बहू को घर की लक्ष्मी कहते हैं।
पर भूल जाते हैं एक बात,
दोनों ही घर की शान बढ़ाती हैं।

बेटी की विदाई में आँसू बहाते हैं,
बहू के आने पर खुशियाँ मनाते हैं।
पर क्यूँ नहीं समझते ये लोग,
दोनों ही रिश्ते दिल से निभाती हैं।

बेटी को पलकों पर बिठाते हैं,
बहू को परखने में वक़्त लगाते हैं।
पर क्यूँ नहीं देखते ये लोग,
दोनों ही अपनों की ख़ुशी चाहती हैं।

आओ मिलकर तोड़ें ये दीवार,
बहू और बेटी में कोई फ़र्क नहीं,
ये बात हम सबको समझाएँ यार।
दोनों ही हैं अनमोल, दोनों ही हैं प्यारी,
इन दोनों के बिना, ज़िंदगी अधूरी हमारी।
© नि:शब्द