...

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मेरी चाहत।
विनम्रता की प्रतिमा,
जग में फैलाती अपनी गरिमा,
सौम्यता की मूर्ति,
जग में फैलाए कीर्ति,
ऐसी हो मेरी दिलरुबा,
मन में है यही कामना,
हो जाय जल्द,
ऐसी शख्सियत से सामना,
दिल ओ दिमाग पर यही,
विचार बार बार आकर सताए हैं।

कुछ मनभावन साथी पाए हैं,
पर पता ठिकाना,न उनका ला पाए हैं,
देखा भी नहीं है उन्हें हमने,
आनलाइन धोखे का डर है हमें
और कैसे पहचानेंगे हम उन्हें,

देखा न हो आपने कभी जिन्हें।
कैसे पहुंचाएं खबर उन्हें,
यही डर मन में सताए हैं।

© mere ehsaas