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जीत पक्की है..
हर लफ़्ज़ है कहती मुझसे,क्यों शिथिल पड़ा है मन तेरा
मंज़िल तो तेरी वही पड़ी है, बस तू रस्ते में रुका खड़ा
जो ख्वाब को पाने निकला है,तो सफर कहां आसान मिले, हर राह में कांटे फैले हैं, ये मुश्किल है जो पुष्प मिले
बस याद ही कर ले पहला प्रण, जिसने तुझे जगाया था
उस मंजिल को पाने के खातिर दूर निकल तू आया था
ये वक्त नहीं कि शोक मना, तू सफर की फिर शुरुआत तो कर,जीत भी तेरी पक्की है, हर बार हार का क्यों है डर।
© Richawrites❣️
मंज़िल तो तेरी वही पड़ी है, बस तू रस्ते में रुका खड़ा
जो ख्वाब को पाने निकला है,तो सफर कहां आसान मिले, हर राह में कांटे फैले हैं, ये मुश्किल है जो पुष्प मिले
बस याद ही कर ले पहला प्रण, जिसने तुझे जगाया था
उस मंजिल को पाने के खातिर दूर निकल तू आया था
ये वक्त नहीं कि शोक मना, तू सफर की फिर शुरुआत तो कर,जीत भी तेरी पक्की है, हर बार हार का क्यों है डर।
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