...

3 views

क्या हम खुद ही खुद को लूट रहे हैं..

मंज़िलें धूमिल हो रही हैं, सपने मेरे टूट रहे हैं
ऐ तन्हा जिंदगी क्या करें हम, हम खुद ही खुद को लूट रहे हैं
झूठी उम्मीदों के सहारे, पग पग आगे बढ़ रहे हैं
आगे बढ़ते भी डरते हैं, पीछे मुड़ते भी डरते हैं
अब क्या करें हम, ये समझ क्यों नहीं पा रहे हैं
ऐ तन्हा जिंदगी हम खुद ही खुद को क्यों लूटे जा रहे हैं
एक दर्द सा रहता है सपनों के टूटने का दिल में
फिर से कोशिश करने की हिम्मत भी तो नहीं होती
ऐसा लगता है जैसे हार के लिए ही बना हूँ
सबको आगे बढ़ता हुआ, पर खुद को वही पाता हूँ
जहां भी देखूं बस खुद को ही पीछे पाता हूँ
मेरी किस्मत में नहीं है या मेहनत में कमी है
या समय अभी आया नहीं मेरा, ये सवाल खुद से पूछता रहता हूँ
सब निकल रहे आगे पर खुद को वहीं पाता हूँ
रो लेता हूँ छुप छुप कर कभी, और खुद को झूठी उम्मीदों का सहारा देता हूँ
आज नहीं हुआ कोई बात नहीं, कल हो सकता है
बस ऐसे ही खुद को जिंदा रख लेता हूँ
पर सच क्या है, ये में जानता हूँ
ना हुआ है पहले कुछ भी, ना आगे हो सकता है
पर पता नहीं क्यों, में फिर भी क्यों न मानता हूँ
दिक्कतें वही हैं , कोशिशें भी वही हैं, परिणाम भी वही हैं, सोच भी वही है, जब कुछ बदल ही नही रहा तो फिर जीकर क्या करूँ में....

© All Rights Reserved
© Rohi