...

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क्या हम खुद ही खुद को लूट रहे हैं..

मंज़िलें धूमिल हो रही हैं, सपने मेरे टूट रहे हैं
ऐ तन्हा जिंदगी क्या करें हम, हम खुद ही खुद को लूट रहे हैं
झूठी उम्मीदों के सहारे, पग पग आगे बढ़ रहे हैं
आगे बढ़ते भी डरते हैं, पीछे मुड़ते भी डरते हैं
अब क्या करें हम, ये समझ क्यों नहीं पा रहे हैं
ऐ तन्हा जिंदगी हम खुद ही खुद को क्यों लूटे जा रहे हैं
एक दर्द सा रहता है सपनों के टूटने का दिल में
फिर से कोशिश करने की हिम्मत भी तो नहीं होती
ऐसा लगता है जैसे हार के लिए ही...