...

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(अंतर्मन की आवाज)

देखो बाहर,
क्या रखा है इस अंधरे में
क्या देखूँ मैं तो तम हूँ इसी मैं रंगी हुई एक कहानी हूँ
मेरे हृदय पर ये मन की नदी उदास-सी बहती है
कितना भी क्यूँ ना ख़ुद को समझाऊँ मैं बदलती नही ।
देखो बाहर आओ ....
ये सूरज का तेज़, ये किरणे ,ये ठंडी शीतल नदी
ये खुला आसमाँ तुम्हारा इंतज़ार कर रहा है
आओ ना....
एक बार ...फ़िर जा ही ना सकोगी तम तक
देखो ना !
नही देखना मुझे क्या देखूँ जब ख़्वाब ही नही बचे
क्यों आऊँ जब वक़्त ही नही बचा
जब मैं मुझमे ही नही रहती तो क्यूँ !
ये सूरज का तेज़ ना झेल पाऊँगी मैं, ये नदी का ठंडा पानी मुझे जला देगा ये आसमाँ मुझे दुआ ना देगा तो ,
क्यों आऊँ जाओ तुम जाओ!!!
आओ ना ...
अभी कुछ भी नही बिगड़ा तुम तम नही ,
तम में रंगी हुई कोई कहानी भी नही
बस ....
भ्रम में जकड़ी हुई हो तुम विशवास रखो
ह्रदय रूपी नदी ठीक तुम्हारे अनुसार ही बहेगी और तुम बदल जाऊँगी
इस दुनिया मे ना ख़्वाबों की कमी है ना वक़्त है
तुम ख़ुद को खोजो सब मिल जाऐगा
चलो आओ ..
बिना कोई सवाल किए बिना संदेह के आओ
एक पल और मत सोचो
कुछ मत पूछो आओ तुम्हे ख़ुद से मिलाती हूँ
तुम्हे जीना सिखाती हूँ तुम्हे मिथ्या जाल से निकालती हूँ तुम्हे सही और गलत का भान कराती हूँ तुम्हे तुम्हारा उद्देश्य याद दिलाती हूँ
आओ ...
पर मैं कैसे !!!!
बहुत लम्बी ख़ामोशी फ़िर .....
कहाँ हो कहाँ हो ....
कहाँ गई तुम हो ना, मेरे अंतर्मन की आवाज़ !!!!!