...

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ये मोहब्बत, ये इश्क... आय हाय...
जो माथे चूमने से पहले, जिस्म चूम जाए...
माथे पर सिकन हो, होठों से लाली चुराए...

दिल की बात जाने बिना, सोचे ये जिस्म है मेरा...
ये मोहब्बत, ये इश्क... आय हाय...

दिन में मिले नहीं, बोले रात होने दो...
तुम नशा हो, शराब हो... अब तो बरसात होने दो...

खुला आसमां, अंधेरी रात... अब इकरार हो जाए...
ये मोहब्बत, ये इश्क... आय हाय...

बात ऐसी, जैसे जान हो तुम...
रात ऐसी, अरमान हो तुम...

इन अरमानों को सलाम हो जाए...
ये मोहब्बत, ये इश्क... आय हाय...

“दिल लगाकर रातें रंगीन करते हो... मुझे मोहब्बत नहीं आती... आय हाय... तुम भी क्या कहते हो...??”

© Rahul Raghav