...

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कुछ खयाल
ढुंढते वह भी कुछ नई पंक्तियां
की नजरों की प्यास मिट जाये
आकुल सा जो अंदर बैठा कुलबुला रहा है
निकल बाहर बहारों सा बिखर जाए
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रौनक आ जाती बिखरती आ रही कोई शहनाई सी
चेहरा चेहरा खिलता खिलती कलियों...