...

10 views

मन कहीं और था
मन कहीं और था
पर रिश्ते निभाती रही मैं ,
दर्द दिल में लिए मुस्कुराती रही मैं ,

सब करते रहें तारिफ मेरे हुनर की ,
क्योंकि रह रिश्ता दिल से
निभाती रही मैं ,

ज़ख्म भूलने की हजार
कोशिश भी नाक़ाम रही ,
अपने आँखों को पूरी रात
अश्क़ों से भिंगाती रही मैं । S.S.
© Lafz_e_sarita