...

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अंगूर की बेटी़
अंगूर की बेटी से मेरा प्यार,
रोज मनाता मैं त्यौहार
मान सम्मान,समाज में ओहदा
मेरा बड़ा था,
लत एक बुरी, मुझ पर,
अंगूर की बेटी के इश्क,
का रंग चढ़ा था,
जब भी पीकर घर जाता,
पत्नी को गुर्राते हुए,
दरवाजे पर पाता,
बूढ़ी माँ रोज चिल्लाती,
मत पी बेटा यह समझाती,
बच्चे बिलककर दूर भागते,
बेहोश -सा पड़ा मै,
मुझे झांकते,
नशे-नशे में कुछ नहीं खाता,
फिर पत्नी से लड़ जाता,
रोजाना का हाल यही था,
अंगूर की बेटी का जाल यही था,
कभी-कभी तो घर नहीं जाता,
रास्ते में...