...

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धीरे-धीरे! दास्तान ज़िंदगी की
© Shivani Srivastava
ठोकर खाकर क़दम लड़खड़ाए बहुत,मगर हम संभलते रहे धीरे धीरे..
लगता क्या ही बचा ज़िंदगी में मगर,ये मंज़र बदलते रहे धीरे धीरे।

आहत होते तो लगता कि जी न सकेंगे,पर क्रम सांसों के चलते रहे धीरे धीरे..
जिजीविषा भी कभी कभी मर सी गई,पर दीप आशा के जलते रहे धीरे धीरे।

वक्त के साथ दर्द बेशक सहन हो गए,मगर ज़ख़्म खलते रहे धीरे धीरे...
हर ख्वाहिश अधूरी ही लगती मगर,ख़्वाब आंखों में पलते रहे धीरे धीरे।

बंदिशें कई लबों पर लगी थी मगर,भाव मन में मचलते रहे धीरे धीरे..
आजिज़ होते रहे इस ज़मी पर मगर ये फलक तक उछलते रहे धीरे धीरे।

एहसास ए दिल बर्फ़ से जम गए थे मगर अश्क बनकर पिघलते रहे धीरे धीरे..
बंद लगती थी जीने की (सब) राहें मगर,नए रास्ते निकलते रहे धीरे धीरे।

#ehsasezindagi