...

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दहलीज़ के पार
बरसों पहले रोज़गार के लिए निकला घर की दहलीज़ के पार,
नौकरी मिली थी मुझे इक पराए शहर में, छूट गया था घरबार।
दूर हो गया था फिर अपने सगे-संबंधियों और रिश्तेदारों से,
बिछड़ गए थे मेरे बचपन और जवानी के सब दोस्त-यार।

लौट जाऊँ वहीं जहाँ रहता था बचपन में, दिल...