मेरी रेल सुबह
सुबह सुबह के बेला मे,
ट्रैन मे बैठा मै देख रहा,
टिकट वाला दुबका है,
बेटिकट वाला ऐंठ रहा!
दीदी - भाभी सजधज कर,
शायद मायके जा रही हैं,
एक अटैची लिए हाथ में,
मंद मंद मुस्कुरा रही हैं!
नये नये मोबाइल मे बिजी,
चाचा मुछ में ताव दे रहे हैं,
बच्चे अपनी सीट छोड़,
दूसरों को भाव दे रहें हैं,
सूरज की किरणे खिड़की से,
धीरे-धीरे से मुश्काती है,
चाय-चाय की कर्कश आवाज भी ,
कानो को सुकून दे जाती है!
सफाई चारो ओर दिखती है,
ट्रैन अब चलने वाली है,
मैल वीर भी है यहाँ हैं पधारे,
सफाई जल्द हाथ...