...

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अभी भी वक़्त है ...
कभी कोई कहानी सुनी है?
आओ मैं सुनाता हूँ .
अल्फ़ाजो में लपेट कर अतीत ले आता हूँ .
किसी की मुस्कराहट भीड़ में भी अलग थी,
बाक़ी सब मिट्टी समान वो फ़लक थी.
चलती थी हवाये यूँ तो पहले की तरह, आने से उसके फिज़ाओ में महक थी.
रौशनी तो सूरज भी हर रोज करता ही था हमने उसके आगे दिए जलाये ,
टूटा फूटा जो दिल था कापते हाथों से हथेली पे ले आये
मुकद्दर अच्छा था जो नसीब में साथ उसका मिला
वो जहाँ ले चला पीछे पीछे मैं भी चला.
नुमाइंदगी उसने मेरी हर जगह की
हर जगह वो मेरी ढ़ाल थी.
खुद नाजुक भले ही हो दूसरों के लिए काल थीं.
बेइन्तहा वफ़ा और मोहब्बत कोई सीखे तो उससे
तारीफों में क्या कहे वो बेमिसाल थी.
पर वफ़ा हर किसी को कहाँ रास आती है
जब मिले कोई ऐसा किस्मत घमण्ड ले आती है.
फिर हम भी चल पड़े झूठी खुद्दारी लिए
प्यार से बना दूरी लापरवाही से यारी लिए
समझ बैठे उसको अपनी ज़ागीर उसकी हदें बनाने लगे
सही गलत का सबक उसको बताने लगे
भूल गए जो संभाल सकता है बिगाड़ना भी जनता है .
अपनी हदों को हमसे बेहतर वो खुद जनता है.
न करते गिला या जोर तो साथ रहता वो, मुसीबत में हाथ थाम सब सही होगा कहता वो.
पर समय और समझ साथ कब रहती है?
अब लब्ज़ो में अपनेपन की दूरी बहती हैं.
वक़्त रहते जो संभल जाये तो साथ ख़ुशगवार हो.
ये न हो एक दूसरे से मिलना भी नाग़वार हो .
संभाल कर रखना गर मिल जाये कोई ऐसा.
याद रखना कही इस रास्ते में एक शायर तुम ही न तैयार हो....
@Amuu_speaks