5 views
मै अपने जख्मों से बीमार लगने लगा था
मै अपने ज़ख्मों से बीमार लगने लगा था।
मेरा ज़ख्म मुझे प्यार लगने लगा था।
ख़ामोश रहा मै हवाओं में हरपल।
फिजाओं का इजहार मुझे लगने लगा था।
दुआ कुबूल रब ने किया है नहीं
अब दया का दीदार मुझे लगने लगा था।
सूखी टहनी भी हरी होती है कभी।
बस सब्र का थोड़ा इंतजार लगने लगा था।
भला क्या बुरा क्या बेशुमार मेरा।
बस अंधेरी रात में भी जगने लगा था।
© navneet chaubey
मेरा ज़ख्म मुझे प्यार लगने लगा था।
ख़ामोश रहा मै हवाओं में हरपल।
फिजाओं का इजहार मुझे लगने लगा था।
दुआ कुबूल रब ने किया है नहीं
अब दया का दीदार मुझे लगने लगा था।
सूखी टहनी भी हरी होती है कभी।
बस सब्र का थोड़ा इंतजार लगने लगा था।
भला क्या बुरा क्या बेशुमार मेरा।
बस अंधेरी रात में भी जगने लगा था।
© navneet chaubey
Related Stories
16 Likes
0
Comments
16 Likes
0
Comments