...

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मै अपने जख्मों से बीमार लगने लगा था
मै अपने ज़ख्मों से बीमार लगने लगा था।
मेरा ज़ख्म मुझे प्यार लगने लगा था।

ख़ामोश रहा मै हवाओं में हरपल।
फिजाओं का इजहार मुझे लगने लगा था।

दुआ कुबूल रब ने किया है नहीं
अब दया का दीदार मुझे लगने लगा था।

सूखी टहनी भी हरी होती है कभी।
बस सब्र का थोड़ा इंतजार लगने लगा था।

भला क्या बुरा क्या बेशुमार मेरा।
बस अंधेरी रात में भी जगने लगा था।
© navneet chaubey