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सुहाने सफ़र की मंजिल
सुहाने सफ़र में चलते हुए,
सोचा था सिर्फ उस मंजिल के लिए।

पथर थे बहुत रास्ते में मिले,
जो सूरज की तेज़ से तप-तपा रहे थे बड़े।

जब नंगे पाँव पड़े उनपे मेरे,
तब बस एहसास किया उस मंजिल के लिए,
कयोंकि वो मंजिल थी मेरे जीने के लिए।
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