...

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परिवर्तब्य का बिगुल
परिवर्तन का बिगुल हर भर पल बजता रहता हैँ
वसंत आता हैँ चला जाता हैँ. जीवन जन्म लेता फिर बिखरता हैँ ...
फूल जो खिला अभी फिर धूल मे मिल जाता हैँ
क्षणभगुरता के अभिशाप से कोई बच नहीं पाता तभी तो आज जो हाथ मे हैँ कुछ समय बाद हवो भी हाथ से फिसल जाता हैँ
थोड़ीदेर कासपना भी कितना प्रीतिकर लगता हैँ लेकिन वो भी आँख खुलते ही पल भर मे टूट जाता हैँ
जो भी जन्म लेता उस धरती पर जन्म पाते ही रोता हैँ और फिर सारी उम्र तब तक रोता हैँ ज़ब तक वो मर नहीं जाता
. कुछ पल ही मिलते हैँ उसे रूपसागर मे रहने के फिर बाद मे वो भी हाथ मालता रह जाता हैँ..
जो नदी आज उफनती हुई दहाड़े मार कर बही जा रही वो भी एक दिन सूख जाती हैँ.
शिखर पर्वत भी एक दिन टूट फुट कर रेत बन जाते हैँ या फिर उनकी बर्फ पिघलने कर पानी बन जाते हैँ.......