...

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ईश्वर को तुम मेरी कविताओं में तलाशना....!
अच्छा... सुनो...!
ईश्वर को
तलाशना हो अगर

तो तुम उसे...
मेरी कविताओं में
तलाश करना !
मेरी कविताओं में मैंने
उसे धूप लिखा है...
संभवतः... जिसके न होने से ही
जीवन के अर्थ ही बदल जाते शायद...

मैंने लिखा है उसे अक़्सर
नीला आसमान...
जो शून्य सा दिखलाई पड़ता तो है
,मगर खाली नहीं है....

मेरी कविताओं में मैंने
ईश् को लिखा है शुद्ध-प्रेम
प्रेम... जो स्वत: ही
हृदयों की खोहडों में पनप जाता है...

सुनो मेरी कविताओं में
एक सूरज है... एक चाँद भी है
मेरी कविताओं में
पृथ्वी की उत्पत्ति की वो
प्रथम ओsss... म.... की
अनहद गूंज है...

तुम्हें मिल जायेंगे
मेरी कविताओं में स्त्री... पुरुष...
बालक... बुजुर्ग...
हिंदू... मुसलमान... न... मिलेंगे...

मेरी कविताओं की आत्माओं में
आस्था है... तुम्हारे लिए...
तुम जहाँ नवाते हो न सिर...
हाँ उसी जगह के लिए....

मेरी कविताओं में सिर्फ़
तुम हो...
न मंदिर... न मस्जिद,
न तुम्हें गुरुद्वारे मिलेंगे....

सुनो... ईश्वर को देखना हो
अगर तो एक बार
मेरी कविताओं की
नज़र से देखना... !


अच्छा... सुनो...!
ईश्वर को
तलाशना हो अगर

तो तुम उसे...
मेरी कविताओं में
तलाश करना !

© मैं... शब्द-वंदिनी,मन-बंदिनी ✍️