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लाकडाउन

जो हुआ है मेरा साथ बरसों से,
वो वक्त तुमने भी आज जिया है।
मेरे पैरों में पड़ी उन बेड़ियों का,
वो दर्द तुमने भी आज सहा है।
घर की दिवारों में यूं बंद हो,
मैंने अपने आसुँओं का घूंट खुद ही पिया है।
तुमसे तो चार दिन गुजारे ही नहीं गए,
सोचो मैंने कैसे बरसों से ये बरदाश्त किया है।
तुम्हें तो ये आदेश भाते ही नहीं हैं,
और तुमने मुझे आपनी हां ना का मोहताज़ किया है।
क्यूँ खुशी नहीं है तुम्हे इस बात से अब,
मैंने तो इस दर्द को कब से,
अपने सीने में दफ्न किया है!!!

©Garima Srivastava

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