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ड़म ड़म डम
हे अभ्यंकर हे प्रलय्न्कर ;
नशा तेरा चढ गया रे ॥ काहे तू मेरे अंदर सम गया रे ॥
भस्म भूत तेरे आभुषण स्मशान वाटी तेरा हू सदन काहे रक्त वीज सा बढ गया रे ॥
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