...

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तेरे लिए
दुनिया के इस छोर से उस छोर मैं चला।
तेरे हिस्से का वक़्त तुझे अर्पण कर मैं चला।

दुनिया पहेली और जीवन माटी हो चला।
नाज़ था ज़िस्म पर वही ज़िस्म द़गा दे चला।

बुढ़ापे की लकीरें छोड़, यादों को मैं ले चला।
अनगिनत ख़्वाब थे जो उसे छोड़ मैं चला।

तुम्हारी दुनिया बनाने अपनी दुनिया दे चला।
बची है कुछ पल की सांसे उसे भी दे चला।

स्वीकार कर लेना, खुद के लिए अब मैं चला।
तेरे हिस्से का वक़्त तुझे अर्पण कर मैं चला।

#मनःश्री
#मनःस्पर्श
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