...

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है नहीं
अब ख़ंजरों पर दिल ये रखने की रवायत है नहीं,
अब बातें भी बे-बाक़ कहने की रिआयत है नहीं.

बोलकर भी करते क्या, अब कौन है सुनता मेरी,
कि चुप रहूं मैं तो किसी को भी शिकायत है नहीं.

मजबूर उम्मीदों से दिल की झुकते हैं हर रोज़ पर,
अब तलक़ उस पत्थर की हम पे इनायत है नहीं.

बेहतर...