...

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सवाल
जो उबाल सीने में है दफन करूं मैं कैसे
सवालों के जो झंझावत दिल में है सहूँ मैं कैसे

ये कौन है मुझमें जो रोज जहां से लड़ता है
इस बात पर, उस बात पर, रोज सबर करता है

इन रोज के अनर्गल अलापों को नजरअंदाज करूं मैं कैसे
चारों ओर के इस दुःसह शोर में खुद को सुनूं मैं कैसे

मसला ये नहीं की कौन क्या कहता है
मसला ये है की मुझको फर्क क्यों पड़ता है

तूफ़ां तेज है ये जर्जर कश्ती से कहूं मैं कैसे
डूबने के डर से किनारे पर बसर करूं मैं कैसे

उठा कर पतवार हर हाल नाव तो खेना है
सैलाब से लड़ कर भी दरिया में ही जीना है

जो बढ़े कदम है उन्हें पीछे अब करूं मैं कैसे
मौत आने से पहले ही जीते जी मरूं मैं कैसे

कई दीवार जो खड़े हैं मेरे कांधों के सहारे
भहराते कांधे की बात उनसे कहूं मैं कैसे

कई बे हौसलों का हौसला जो हुआ करता है
उन उम्मीदों को ना उम्मीद करूं मैं कैसे

जो जीवन समर है तो संघर्ष करना होगा
जीतने से पहले हाथ खड़े करूं मैं कैसे
© Ranjana Shrivastava
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