...

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हिंदी दिवस
केहते हैं दिल खोलकर उन्हीं के साथ रेह सकते हैं,
जिनको हम दिल से अपने मानते हैं।
केहने में कोई गुंजाइश नहीं की,
"हिंदी" तो इतनी गुल मिल गई की,
इस से मन्न की बातें सुनना,
व्यक्त करना एक ऐसी आदत
होगई की,
जिसके बिना दिल नहीं भरता है।

© Akirah