...

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स्त्री

प्रेम करने का हक
सिर्फ और सिर्फ पुरूष को हैं
स्त्री को नहीं
उसका प्रेम
कुलटा, बेशर्मी,आवारा
की निशानी
पुरुष का प्रेम
बलिदान,त्याग,भावना
से परिपूर्ण

पुरुष की उम्र की मंगलकांक्षा
स्त्री करती
कभी सुना हैं
स्त्री की मंगलकांक्षा के लिए
पुरुष ने किया हो कुछ
कभी बांधा हो रक्षाधागा
किसी वृक्ष से
या किया हो
वलगासूक्त का पाठ
उसकी रक्षा के लिए
एक स्त्री ही हैं
जो बन जाती
हर बार काली,सीता,राधा,मीरा...
खिंच लाती यमदूत से वो
सावित्री अपने पति को...
यशोधरा बन पलक बिछाये
जीवनपर्यंत उम्मीद के तार पर
इंतजार करती....
रुक्मिणी बन
प्रतीक्षा करती हर पल...
स्त्री ही हैं
सहनशील, उपेक्षित स्वयं से
आकांक्षाओं से परिपूर्ण
बलिदान की प्रतिमूर्ति...
ओर क्या कहें
स्त्री स्त्री हैं
कभी पुरुष नही बन सकती

©®#रीना