...

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चाय नुक्कड़ पर....
नुक्कड़ पर बैठ हम
ख़ुद को चाय की
चुस्कियां पिला रहे थे
न जाने वो कहाँ से आए
और हम संग बतिया रहे थे

न जान न पहचान
मगर एहसास उन्हें देख
मन ही मन मुस्कुरा रहे थे
न इश्क़ न मोहब्बत
फ़िर भी हम इतरा रहे थे

चाय भी अड़ी थी
कुल्हड़ के कोने कोने में भरी थी
और हम सराह रहे थे
यह मिठास ख़तम होती तो कैसे
चाहतें दो दिलों में
नया घर बना रहे थे

मासूम बातें उसकी हमारी
हवा में अभी अभी हुए इश्क़ की
खुशबू उड़ा रहे थे
छू कर गुजर न जाएं ये पल
मन ही मन सोच
हम ज़रा घबरा रहे थे
...नुक्कड़ पर बैठ जब हम
ख़ुद को चाय की
चुस्कियां पिला रहे थे..!!

... bindu



© bindu