...

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नारी को प्रणाम
वो जो पिता के आंगन का फूल,
वो जो स्नेह का शीतल जल,
वो माता की प्रार्थना का मूल,
वो जिसमे कपट ना छल,
उस बेटी को प्रणाम।

वो जो चंचल हिरण जैसी,
वो जो कोमल सुमन जैसी,
वो जो धीर धरा जैसी,
वो जो राजकुमारी परी जैसी,
उस बहन को प्रणाम।

वो जो सुंदर शषी जैसी,
वो जो खिलता कमल जैसी,
वो जो मन का उथल पुथल जैसी,
वो जो मित्रता के पल जैसी,
उस सखी को प्रणाम।

वो जो रीढ की हड्डी जैसी,
वो जो स्थिर पर्वत जैसी,
वो जो पवित्र सति जैसी,
वो जो पतिव्रत सावित्री जैसी,
उस अर्धांगनी को प्रणाम।

वो जो पूजन माला जैसी,
वो जो करुणा सागर जैसी,
वो जो ज्ञान का दीप जैसी,
वो जो धूप में छाया जैसी,
उस मां को प्रणाम।

वो जो पहली गुरू हमारी,
जिसकी डांट भी है प्यारी,
जिसने हमको पाके खुद को खोया,
जिसने सद्बुद्धी का बीज बोया,
उस जननी को प्रणाम।

जिसे सभी ने ठुकराया,
कभी उपवसत्र कभी वैश्या बनाया,
कभी निर्वसत्र सभा में लाया,
कभी दुर्गा का रूप बताया,
उस चंडी को प्रणाम।

जो कहलाती मां काली है,
जो इतनी शक्तीशाली है,
हज़ारों महिशासुरों का वध कर रक्त पीनेवाली है,
फिर भी शिव के निर्आदर से विचलित होनेवाली है,
उस नारी को प्रणाम।
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