नारी को प्रणाम
वो जो पिता के आंगन का फूल,
वो जो स्नेह का शीतल जल,
वो माता की प्रार्थना का मूल,
वो जिसमे कपट ना छल,
उस बेटी को प्रणाम।
वो जो चंचल हिरण जैसी,
वो जो कोमल सुमन जैसी,
वो जो धीर धरा जैसी,
वो जो राजकुमारी परी जैसी,
उस बहन को प्रणाम।
वो जो सुंदर शषी जैसी,
वो जो खिलता कमल जैसी,
वो जो मन का उथल पुथल जैसी,
वो जो मित्रता के पल जैसी,
उस सखी को प्रणाम।
वो जो रीढ की हड्डी जैसी,
वो जो स्थिर पर्वत जैसी,
वो जो...
वो जो स्नेह का शीतल जल,
वो माता की प्रार्थना का मूल,
वो जिसमे कपट ना छल,
उस बेटी को प्रणाम।
वो जो चंचल हिरण जैसी,
वो जो कोमल सुमन जैसी,
वो जो धीर धरा जैसी,
वो जो राजकुमारी परी जैसी,
उस बहन को प्रणाम।
वो जो सुंदर शषी जैसी,
वो जो खिलता कमल जैसी,
वो जो मन का उथल पुथल जैसी,
वो जो मित्रता के पल जैसी,
उस सखी को प्रणाम।
वो जो रीढ की हड्डी जैसी,
वो जो स्थिर पर्वत जैसी,
वो जो...