...

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जज़्बातों की लकीर....
मैं, हर रोज
इसी उम्मीद से जीता हूँ
कि आज तेरी याद पर
किसी और की मोहर लगा दूँगा
किसी और का नाम नहीं दिल पर
तो तेरा नाम तो मिटा दूँगा......

पर हर रोज वही गलती करता हूँ
हर किसी में, मैं तुझे ही ढूँढता हूँ
हर शाम खुद से,वही सवाल करता हूँ
वो दर्द जिंदगी भर का दे गया
प्यार के शीश महल में,
झूठ की सेंध लगा गया
फिर भी तू क्यूँ उसे याद करता है
दरारों में जीता है.....

हर पल ज़वाब , एक ही होता है
" वो पहला प्यार था मेरा , जो आखिरी बन गया
उसके झूठ में , जज़्बातों की एक लकीर एक खींच गया
जो अब मैं ही , ना पार कर पा रहा हूँ
आगे बढ़ कर भी , हाथ किसी का
ना थाम पा रहा हूँ। "


© nehaa