शायद बचपन लौट आये
बचपन की वो मासूमियत कहां है,
जो कुछ कोई कह देता वो ही मान लेतें थें,
पल भर में दोस्त बनां लेतें थें,
कभी जिद पर अड़ जातें थें,
फिर सभी बड़े मन बहला देतें,
और बड़ी बड़ी बातें बता सब भूलवा देतें
कभी जानबूझकर हम रोनें लगतें,
ताकि कोई आकर हमसे करें अच्छी बातें,
कभी कोई डांटे तो रो पड़ते थें,
अब तो हमारे पास रोने तक समय नहीं,
कभी मस्ती में झुमतें थें,
मां,पापा को...
जो कुछ कोई कह देता वो ही मान लेतें थें,
पल भर में दोस्त बनां लेतें थें,
कभी जिद पर अड़ जातें थें,
फिर सभी बड़े मन बहला देतें,
और बड़ी बड़ी बातें बता सब भूलवा देतें
कभी जानबूझकर हम रोनें लगतें,
ताकि कोई आकर हमसे करें अच्छी बातें,
कभी कोई डांटे तो रो पड़ते थें,
अब तो हमारे पास रोने तक समय नहीं,
कभी मस्ती में झुमतें थें,
मां,पापा को...