...

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ग़ज़ल
तेरे बिना न कोई भी अपना दिखाई दे
सपना कोई सुनहरा उजड़ता दिखाई दे

ज्यों चाॅंद अर चकोर का रिश्ता है आपसी
क़िरदार मेरा तुझसे निखरता दिखाई दे

तू आफताब है मेरा महबूब-ए-ज़िंदगी
तुझसे ही रंग-रूप सॅंवरता दिखाई दे

होते ही तुझसे दूर चराग़-ए-वफ़ा मेरा
पल में ही फड़फड़ा के है बुझता दिखाई दे

है साथ तेरा तो मुझे हर वक़्त हर घड़ी
तूफ़ान में भी जैसे किनारा दिखाई दे
© Deepak