एक स्यतन्त्रता की कहानी
कुबूल -ए-दुआ है उनके लिए,
जो सर गुलामी से झुके नहीं,
कभी डगमगाए पैर भी थे,
पर दिलों की हौसले नहीं
खाली कर...
जो सर गुलामी से झुके नहीं,
कभी डगमगाए पैर भी थे,
पर दिलों की हौसले नहीं
खाली कर...