javab ...
कोई ख़याल
और कोई भी जज़्बा
कोई भी शय हो
जाने उसको
पहले-पहल आवाज़ मिली थी
या उसकी तस्वीर बनी थी
सोच रहा हूँ
कोई भी आवाज़
लकीरों में जो ढली
तो कैसे ढली थी
सोच रहा हूँ
ये जो इक आवाज़ अलिफ़ है
सीधी लकीर में
ये आिख़र किसने भर दी थी
क्यों सबने ये मान लिया था
सामने मेरी मेज़ पे इक जो फल रक्खा है
इसको सेब...
और कोई भी जज़्बा
कोई भी शय हो
जाने उसको
पहले-पहल आवाज़ मिली थी
या उसकी तस्वीर बनी थी
सोच रहा हूँ
कोई भी आवाज़
लकीरों में जो ढली
तो कैसे ढली थी
सोच रहा हूँ
ये जो इक आवाज़ अलिफ़ है
सीधी लकीर में
ये आिख़र किसने भर दी थी
क्यों सबने ये मान लिया था
सामने मेरी मेज़ पे इक जो फल रक्खा है
इसको सेब...