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न जीत स्थाई है न हार
#हिंदी साहित्य दर्पण
स्वरचित - नन्द गोपाल अग्निहोत्री
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झुको न इतना कि टूट जाओ,
न अकड़ो इतना कि टूट जाओ ।
अति न अच्छी होती किसी की,
अति से दामन सदा बचाओ ।
जीत जहाँ पर हुई कभी है,
हार भी हो सकती वहीं पर ।
हम न रहेंगे कोई तो होगा,
ये नूराकुश्ती चलती रहेगी ।
परिवर्तन है नियम प्रकृति का,
होता रहा है होता रहेगा ।
युगों युगों से ये होता आया,
तमाशा यूंही चलता रहेगा ।
© Nand Gopal Agnihotri