संन्यासी
गृहस्थ सन्यासी!!
है गीता का उपदेश निराला
श्री कृष्ण ने जो था बतलाया
कर्म ही पूजा कर्म ही भक्ति
पाता मानव कर्म से ही मुक्ति।
तन भले धन में किन्तु
रहता वो निरासक्त मन से ।
संबंध वो निभाता सारे किन्तु
रहता घिरा सिर्फ श्री हरि के बंधन में ।
भावनाएं उसे भले भटकाए ...
है गीता का उपदेश निराला
श्री कृष्ण ने जो था बतलाया
कर्म ही पूजा कर्म ही भक्ति
पाता मानव कर्म से ही मुक्ति।
तन भले धन में किन्तु
रहता वो निरासक्त मन से ।
संबंध वो निभाता सारे किन्तु
रहता घिरा सिर्फ श्री हरि के बंधन में ।
भावनाएं उसे भले भटकाए ...