रिहाई
इन काले गहरे सन्नाटों में,
कोई बात बाहर आती नहीं,
मेरी धीमी सी सिसक के सिवा,
कोई आवाज़ सुनाई देती नहीं।
मैं ज़हन में चिल्लाऊं भी,
तो लबों तक बात लाऊं कैसे?
यहाँ दूर दूर...
कोई बात बाहर आती नहीं,
मेरी धीमी सी सिसक के सिवा,
कोई आवाज़ सुनाई देती नहीं।
मैं ज़हन में चिल्लाऊं भी,
तो लबों तक बात लाऊं कैसे?
यहाँ दूर दूर...