पहला ख़त
उसको लिखा एक ख़त पहले मैंने
और जब भी डाकिया अपने
साइकिल की घंटी बजाता
दौड़ के मैं खिड़की के पास खड़ा हो जाता
लेकिन अफ़सोस वो ख़त मेरे लिए नहीं
गुज़र गए दिन ऐसे कई
और उदासी की लहर छाने लगी...
और जब भी डाकिया अपने
साइकिल की घंटी बजाता
दौड़ के मैं खिड़की के पास खड़ा हो जाता
लेकिन अफ़सोस वो ख़त मेरे लिए नहीं
गुज़र गए दिन ऐसे कई
और उदासी की लहर छाने लगी...