समझे बिना वफ़ा करना ही इश्क़ का गुरूर है
एक दूजे को समझना इश्क का दस्तूर है
समझने से जो किया जाए वो फितूर है
ख़्वाब, ख़्याल, अहसास लाज़मी होने लगे
ख़्याल महबूब का होना ही फिर बदस्तूर है
रात, रानाइयां और वस्ल के अम्कानात भी
मुम्किन नज़र आते हैं ...
समझने से जो किया जाए वो फितूर है
ख़्वाब, ख़्याल, अहसास लाज़मी होने लगे
ख़्याल महबूब का होना ही फिर बदस्तूर है
रात, रानाइयां और वस्ल के अम्कानात भी
मुम्किन नज़र आते हैं ...