...

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ये उलझन कैसे सुलझाऊँ
कोई बताए ये उलझन कैसे सुलझाऊँ,

सच तो ये ही की मैं खुद ही खुद को समझाता हूँ,
की तुम मेरे नही हो,पर दिल का दर्द है की जाता नहीं,
किसी को बताता हूँ तो लोग कहते हैं कहाँ अटके हो,
आगे बढ़ो,राहें और भी हैं,
अब उन्हे कैसे समझाऊँ
कुछ बाते अपने बस में नही होतीं,
कोशिश हज़ार कर लो आसान नही होता कुछ राहों को छोड़ना....

बस में मेरे होता तो,होता ही नही जो हो रहा है या जो हुआ,अजीब कशमकश है जीवन भी.....

क्या करूँ क्या नहीं कोई नही समझता दिल का दर्द मेरे....

कुछ लोग जिन्हें मर्ज समझा था वो तो दर्द की वजह बन गए...

कोई तो बताए किया तो किया क्या जाए...उलझन बहुत हैं कैसे सुलझाऊँ

उसके पास ही रहूँ या उससे दूर चला जाऊं..
© a mad writer