क्यों नहीं हो सकता तू मेरी मंज़िल,क्यों तूने राहों में कांटे बिछाए हैं।
क्यों नहीं हो सकता तू मेरी मंज़िल,
क्यों तूने राहों में कांटे बिछाए हैं।
क्यों नहीं हो सकता तू मेरी मंज़िल,
क्यों तूने राहों में कांटे बिछाए हैं।
हर बार मेरी सोच के ख़िलाफ़त में तूने,
ज़माने से मिलकर साज़िश रचाए हैं!
सभी से...
क्यों तूने राहों में कांटे बिछाए हैं।
क्यों नहीं हो सकता तू मेरी मंज़िल,
क्यों तूने राहों में कांटे बिछाए हैं।
हर बार मेरी सोच के ख़िलाफ़त में तूने,
ज़माने से मिलकर साज़िश रचाए हैं!
सभी से...