...

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पत्थर!!
जबसे पत्थरों पर नक्काशी हुई
आदमी खुद ही पत्थर बन गया है
बंद हो गए हैं अहसास दिल के
आदमी खुद मर गया है।
बुत है शहर, बुत हैं शहर के लोंग
दिखते तो जिंदा हैं जमीर मर गया है
चेहरों पर नकाब लिए फिरते हैं
क्योंकि रंग चेहरे का उड़ गया है।