...

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खाक हो गए है हमें राख मत बनाओ
जब कोई किसी अपने को खोता है
फिर कहा वो कभी चैन से सोता है
दिन हो या रात वो रोता है बार बार

काश वो रब भी समझ पाता
इंसान क्या खोता क्या पाता

हर रोज़ भीख मांगी थी उस रब से
दे दे मुझे एक मौका
फिर भी मिला ये धोका

मुझे करनी थी उनकी सेवा
देखनी थी उनकी मुस्कान
पर कुछ भी नही था आसान

हालात ने मुझे लाचार बना दिया था
कसमों ने मुझे उलझा दिया था
ज़िंदगी की कशमकश में मैं सब भूल गई
एक बहन के हाथो भाई की कलाई की राखी छूट गई
जिन्हें गले लगाके सोचा था सारा दर्द भूल जाएंगी
तब मेरे आंसू बयान करेंगे मेरा प्यार ओर मै चुप चाप उनसे मिल पायूंगी
वहा वक्त का खेल कुछ ऐसा रचा था
जहा हम उन्हे गले लगाने को बैठे थे
वो हमारे सामने बेजान अर्थी पे लेटे थे

वक्त ने ये क्या ज़ुल्म किया
दिल भी तोड़ दिया
मौका भी छीन लिया

कितनी बातें कहनी थी उनसे
वो अनसुनी ही रह गई
एक भाई की बहन टुकड़ों में जो ढह गई

वो कहते थे मुझे लाठी हूं मै उनकी
वो कमज़ोर ही रह गई

वो दिन क्यूं आया
जब वो मुझसे छीन गए
वो मुझे यू तन्हा छोड़ गए।

याद कर वो मौत का मंजर
टूटता है रोज कुछ मेरे अंदर
कैसी मैं बहन थी
जो उनको रोक ना सकी??

उनकी आंखों की चमक
उनके होठों की हसी
उनके मीठे से वो बोल
कहा मिलेगा मुझे अब ये सब?

किसी बहन को ये दिन ना देखना पड़े
जब उसे अपने भाई के लिए तरसना पड़े।

जल रही हूं मैं आज भी उस आग में
दफन हुए तो वो जिस राख में।

उनके दीदार को हम तरसते रह गए
इन आंखों से आंसू बरसते रह गए

फिर भी आस लगी है दिल में
वो आएंगे मुझसे मिलने

खुशियों की मेरी चाबी है वो
उस रब की रज़ा मे भी राज़ी है वो!
© Sonali

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