...

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अलविदा
मुड़ के देखने की हिम्मत ना थी,
सीधे चलने के सिवा कोई हरकत ना थी।
कुछ पल का साथ फिर होना था जुदा,
आंखों आंखों में ही मैंने कहा था अलविदा।
वो हर एक पल किसी दूसरी ज़िंदगी सा था,
एक खूबसूरत ख़्वाब की खुशी सा था।
चंद लम्हों के बाद वक्त ए रुकसत सामने था,
तेरा नूर पीछे था और मेरा फ़र्ज़ सामने था।
अब निकल पड़ा हूं न जाने किन राहों पर,
यादों का बोझ और तेरा एहसास लिए बाहों पर।
वही बाहें जो तेरी रात का सिराहना थीं,
तेरे नूर की बारिश का जैसे एक पैमाना थीं।
उस एहसास को ज़हन में सजा कर मैं चला हूं,
उस आख़री मुलाकात की अलविदा आँखों से कर चला हूं।

© Musafir